चंद बोटी नुमा रिश्वत के आगे नतमस्तक हो चुकी राजधानी पुलिस कर रही कबाड़ीयों की दलाली?….
राजधानी में खाकी और कबाड़ियों की गठजोड़ से पत्रकारों पर हमला: सुरक्षा कानून बना जुमला…
चोरी के लोहा माफिया का कवरेज करने पहुंचे पत्रकारों पर हमला, महिला पत्रकार से भी बदसलूकी
उरला थाना प्रभारी ने एफआईआर दर्ज करने की बजाय किया सुलह का प्रस्ताव, पुलिस पर संरक्षण देने के आरोप…
रायपुर। राजधानी में पत्रकारों पर हो रहे हमले और पुलिस की ढुलमुल नीति से पत्रकार सुरक्षा कानून केवल जुमला साबित हो रहा है। ताजा घटना में चोरी के लोहे की जानकारी मिलने पर कवरेज करने पहुंचे पत्रकारों को कबाड़ियों ने न केवल धमकाया, बल्कि महिला पत्रकार सहित उनके साथियों के साथ मारपीट भी की। घटना टाटीबंध से बिलासपुर की ओर जाने वाले बायपास रोड पर एचपी पेट्रोल पंप के बगल स्थित एक कबाड़ी यार्ड की है, जहां चोरी का लोहा बड़े पैमाने पर काटा और बेचा जा रहा था। पत्रकारों ने जब इस अवैध गतिविधि की कवरेज करनी चाही, तो यार्ड में काम कर रहे लोगों ने उन पर हमला कर दिया। महिला पत्रकार के साथ अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया और उसका मोबाइल छीन लिया गया।
पत्रकारों ने जब इस घटना की रिपोर्ट लिखवाने उरला थाने का रुख किया, तो थाना प्रभारी ने एफआईआर दर्ज करने की बजाय पत्रकारों से सुलह करने की बात कही। इस घटना से स्पष्ट होता है कि पुलिस कबाड़ियों के संरक्षण में काम कर रही है। पुलिस की यह भूमिका राजधानी में पत्रकारों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करती है। यह पहली बार नहीं है कि कबाड़ियों के खिलाफ उठने वाली आवाज़ को दबाया गया है। सूरजपुर की हालिया घटना के बाद से कबाड़ियों के हौसले बुलंद हैं, और राजधानी में भी उनकी गतिविधियां पुलिस के संरक्षण में फल-फूल रही हैं। उरला थाना प्रभारी का पत्रकारों के प्रति रवैया यह दर्शाता है कि कानून के रक्षक ही अब कानून तोड़ने वालों के समर्थक बन गए हैं।
पत्रकारों ने इस मामले की शिकायत वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के अलावा कांग्रेस के पीसीसी चीफ दीपक बैज और वरिष्ठ नेता सत्य नारायण शर्मा से की है। कांग्रेस नेताओं ने पुलिस के इस रवैये की निंदा की है और निष्पक्ष कार्रवाई की मांग की है। अब देखना यह है कि प्रशासन कबाड़ियों के खिलाफ सख्त कदम उठाता है या पत्रकारों पर हुए इस हमले को ‘सेटलमेंट’ के नाम पर दबा दिया जाएगा।