स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता: झोलाछाप डॉक्टरों के आतंक पर कब लगेगी लगाम?….
झोलाछाप डॉक्टरों की मनमानी पर स्वास्थ्य विभाग की खामोशी
धरमजयगढ़:- छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर राज्य की विष्णु सरकार भले ही गंभीर दिख रही हो, लेकिन धरमजयगढ़ क्षेत्र में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की उदासीनता के चलते झोलाछाप डॉक्टरों के हौसले बुलंद हो गए हैं। शहर के गली-मोहल्लों में बिना किसी मान्यताप्राप्त डिग्री के अवैध क्लीनिक धड़ल्ले से चल रहे हैं। इन झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा न केवल साधारण बीमारियों का इलाज किया जा रहा है, बल्कि गंभीर बीमारियों के लिए भी बड़ी-बड़ी चिकित्सा प्रक्रियाएं की जा रही हैं।
यह स्थिति तब और भी चिंताजनक हो जाती है जब इन अवैध क्लीनिकों की जानकारी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के पास होने के बावजूद कोई ठोस कार्यवाही नहीं होती। कुछ समय पहले प्रकाशित एक समाचार के बाद खंड चिकित्सा अधिकारी डॉ. बीएल भगत ने कापू क्षेत्र के पखनाकोट ग्राम पंचायत के बारबंद इलाके में एक अवैध क्लीनिक को सील किया था। लेकिन इसके बावजूद झोलाछाप डॉक्टरों का कारोबार बदस्तूर जारी है। सील किए जाने के कुछ ही समय बाद, डॉक्टरों ने पुनः अवैध तरीके से इलाज शुरू कर दिया, और यह बताने के लिए कोई नहीं है कि उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई।
आर्थिक और जान का जोखिम…
झोलाछाप डॉक्टरों के इलाज से गांव के गरीब आदिवासी मरीजों को न केवल आर्थिक नुकसान होता है, बल्कि उनकी जान भी खतरे में रहती है। बिना किसी विशेषज्ञता और मान्यता के, ये डॉक्टर गांव के भोले-भाले लोगों के जीवन से खिलवाड़ करते हैं। बारबंद में चलने वाला अवैध अस्पताल मरीजों को भर्ती करने तक की सुविधा प्रदान करता है, जो पूरी तरह से गैरकानूनी है। इतना ही नहीं, वहां गंभीर बीमारियों का इलाज भी किया जा रहा है, जिनका इलाज केवल विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा किया जाना चाहिए।
महामारी के समय झोलाछाप डॉक्टरों की ‘गायब’ रणनीति…
गांवों में जब डायरिया या अन्य बीमारियां फैलती हैं, तब ये झोलाछाप डॉक्टर अपना क्लीनिक बंद करके गायब हो जाते हैं। धरमजयगढ़ के नजदीकी ग्राम ओंगना में हाल ही में डायरिया का प्रकोप फैला था। गांव के अधिकांश लोग उल्टी-दस्त जैसी बीमारियों से पीड़ित थे। स्वास्थ्य विभाग ने कई दिनों तक शिविर लगाकर इलाज किया, लेकिन जैसे ही डायरिया फैला, गांव में क्लीनिक चलाने वाला झोलाछाप डॉक्टर अपना बोरिया-बिस्तर समेटकर भाग खड़ा हुआ। स्थिति सामान्य होने पर वह फिर से लौट आया और अवैध क्लीनिक चलाना शुरू कर दिया।
कड़ी कार्रवाई की जरूरत…
गांव के गरीब आदिवासी और मजदूरों के जीवन से इस तरह के खिलवाड़ को रोकने के लिए स्थानीय प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को सख्त कदम उठाने की जरूरत है। ऐसे झोलाछाप डॉक्टरों की जांच होनी चाहिए और उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई भी अवैध क्लीनिक ग्रामीणों के स्वास्थ्य और जीवन के साथ खिलवाड़ न कर सके। प्रशासन को चाहिए कि जल्द से जल्द ठोस कदम उठाए ताकि भविष्य में ग्रामीणों को आर्थिक और शारीरिक दोनों तरह के नुकसान से बचाया जा सके।
आखिरकार, सवाल उठता है कि जब सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रति गंभीर है, तो उसके ही अधिकारी क्यों इस पर ध्यान नहीं दे रहे? क्या ग्रामीणों की जान इतनी सस्ती है कि उसे झोलाछाप डॉक्टरों के हवाले कर दिया जाए?