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हाईप्रोफाइल दबाव, ढीली कार्यशैली और पीड़िता पर FIR — सरिया थाना में कानून का चीरहरण!

क्या राजनीतिक रसूखदारों की चाकरी में नतमस्तक हुई पुलिस?

थाने में इंसाफ की जगह अन्याय का नंगा नाच…

सारंगढ़-बिलाईगढ़। सरिया थाना क्षेत्र के बिलाईगढ़-स गांव में महिला से मारपीट का मामला जितना संवेदनशील था, उससे कहीं अधिक शर्मनाक और चिंताजनक बन गया है पुलिस की पक्षपाती कार्यशैली और राजनीतिक दबाव के चलते। न्याय की उम्मीद लेकर थाना पहुंची महिला को न सिर्फ अपमानित किया गया, बल्कि उसे ही कटघरे में खड़ा करने की तैयारी प्रशासन ने कर डाली।

उर्मिला पटेल नाम की महिला के साथ हुए इस हिंसक वारदात में उसके देवर जयना पटेल ने घर में घुसकर गाली-गलौज, हाथापाई और यहां तक कि कपड़े फाड़ने जैसे घृणित कृत्य को अंजाम दिया। यह न सिर्फ घरेलू हिंसा का मामला था, बल्कि महिलाओं के प्रति अपराध की एक खुली बानगी थी। पर अफसोस कि सरिया थाना की पुलिस, जिसे न्याय का प्रहरी होना था, वह सत्ता के इशारों पर झुकती, लचकती और गिरती चली गई।

पीड़िता ने बताया कि शुरुआत में FIR तो दर्ज हुई, पर जैसे ही ‘ऊपर’ से फोन घनघनाए, पुलिस के रुख में चौंकाने वाला बदलाव आया। पीड़िता पर ही एफआईआर दर्ज करने की तैयारी शुरू हो गई — “न भूतो, न भविष्यति” — क्या यही है न्याय का नया मॉडल?

थाना परिसर में आरोपियों की दिनभर की चहलकदमी, उनके हौंसलों की ऊँचाई और पीड़िता के रिश्तेदार पर खुलेआम चप्पल से हमला — और फिर भी थाना प्रभारी की चुप्पी — यह सब इस बात का सबूत है कि थाना अब न्याय का नहीं, दबाव का अड्डा बन चुका है।

जब SDOP मौके पर पहुंचे, तब जाकर कुछ कार्रवाई हुई और आरोपी जयना पटेल पर धाराएं तो लगाई गईं —
115(2)-BNS, 296-BNS, 3(5)-BNS, 351(2)-BNS
पर सवाल यह है कि ये धाराएं न्याय दिलाने के लिए लगीं या सिर्फ जनता को शांत करने के लिए?

आखिर कब तक पुलिस राजनीति की चौखट पर घुटनों के बल चलती रहेगी?…
क्या एक आम महिला को इंसाफ पाने के लिए भी नेताजी की सिफारिश लानी होगी?…
क्या थाना सिर्फ रसूख वालों का है और पीड़ित केवल केस नंबर बनकर रह जाएंगे?….

यह मामला अकेले उर्मिला पटेल का नहीं, बल्कि हर उस महिला का है जो अत्याचार सहकर भी न्याय के लिए पुलिस थाने जाती है — और वहां उसे दूसरा अत्याचार झेलना पड़ता है।

अब वक्त है कि पुलिस प्रशासन आईना देखे — और तय करे कि वह संविधान का सेवक है या सत्ता का गुलाम
वरना आने वाले वक्त में लोगों को FIR से पहले FIR करने की सिफारिश और सरपरस्त तलाशने होंगे!
चुप्पी अब गुनाह बन चुकी है, और पुलिस की यह चुप्पी भरोसे की हत्या है। कानून अगर वर्दी से डरने लगे, तो न्याय भी अपराध हो जाता है।

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