रायगढ़

बाबा कुटीर मंदिर : विकास की आंधी में ना बुझे आस्था का पुरातन दीप।

लगभग 80 साल पुराने महादेव मंदिर पर मंडराने लगा खतरा , जानिए क्या कहते हैं आंचल वासी?

रायगढ़। केलो नदी के पावन तट पर, वट और पीपल की शीतल छांव में स्थित बाबा कुटीर मंदिर परिसर न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह रायगढ़ की आत्मा से जुड़ी एक सदी पुरानी आस्था का प्रतीक भी है। शिव, दुर्गा और हनुमान की प्रतिष्ठित प्रतिमाओं से सुशोभित यह स्थल, न केवल मंदिर है, बल्कि पीढ़ियों से जुड़ा एक जीवंत आध्यात्मिक केंद्र रहा है, जहां श्रद्धा हर दिन साँस लेती है।

स्थानीय नागरिकों के अनुसार, यह मंदिर परिसर आज़ादी से पूर्व, सन 1946 में जूटमिल निवासी अग्रवाल परिवार द्वारा स्थापित किया गया था। शिवलिंग को विशेष रूप से इलाहाबाद से संगमरमर में बनवाकर मंगवाया गया और महाशिवरात्रि के पावन दिन विधिवत प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। यह सिर्फ पत्थरों की संरचना नहीं, बल्कि क्षेत्रवासियों की पीढ़ियों से चली आ रही भावना, विश्वास और भक्ति की नींव है।

हर वर्ष शिवरात्रि, नवरात्रि, हनुमान जयंती, वट सावित्री व्रत जैसे पर्वों पर सैकड़ों श्रद्धालु यहां एकत्र होते हैं। नियमित पूजन, हवन और अनुष्ठान यहां की परंपरा का हिस्सा बन चुके हैं। यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक, बल्कि सामुदायिक एकता का भी केन्द्र है।

हाल ही में मैरिन ड्राइव और कायाघाट एसईसीएल रोड के चौड़ीकरण की योजना के तहत बाबा कुटीर मंदिर परिसर पर संभावित अतिक्रमण की आशंका ने स्थानीय निवासियों में चिंता की लहर दौड़ा दी है। विकास आवश्यक है, परंतु वह इस आस्था की पुरातन दीप को न रौंदा जाए । स्थानीय जनों का विनम्र अनुरोध है कि विकास कार्यों को संवेदनशीलता और समझदारी के साथ संपन्न किया जाए, ताकि करीब 80-90 वर्षों की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखा जा सके। मंदिर परिसर को कम से कम क्षति पहुँचे – यही क्षेत्रवासियों की सामूहिक पुकार है।

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