कागजों पर 4 एकड़ भूमि, मौके पर रकबा कम , राजस्व और वन विभाग में विवाद…
नवापारा (धरमजयगढ़): तहसील क्षेत्र के ग्राम मिरीगुड़ा में जमीन विवाद का एक अनोखा मामला सामने आया है, जिसमें कागजों के मुताबिक एक व्यक्ति के नाम 4 एकड़ जमीन रजिस्ट्री की गई है। लेकिन मौके पर उतनी जमीन उपलब्ध नहीं है। यह मामला राजस्व और वन विभाग के बीच संघर्ष का कारण बन गया है, जिससे स्थानीय प्रशासन और शासन के लिए चुनौती खड़ी हो गई है।
समतलीकरण ने बढ़ाई समस्या
सूत्रों के अनुसार, जमीन रजिस्ट्री होने के तुरंत बाद संबंधित व्यक्ति ने भूमि पर समतलीकरण कार्य शुरू कर दिया। लेकिन समस्या तब उत्पन्न हुई जब समतलीकरण का कार्य विवादित भूमि के पास स्थित लक्ष्मीपुर की 353 पीएफ नारंगी वन क्षेत्र तक बढ़ने लगा। इस क्षेत्र में वन विभाग ने सागौन के पौधों का रोपण किया था। वन विभाग ने जब देखा कि उनके क्षेत्र में मुरूम गिराया जा रहा है, तो उन्होंने तुरंत कार्रवाई करते हुए कार्य को रोक दिया।
राजस्व विभाग का दावा
हल्का पटवारी प्रमोद राठिया का कहना है,
“हमने तहसीलदार और आरआई के साथ मिलकर मौके पर जांच की। जांच में यह भूमि राजस्व विभाग की निजी भूमि पाई गई। मौके पर वन विभाग के अधिकारी भी मौजूद थे।”
वन विभाग की प्रतिक्रिया
धरमजयगढ़ के वन परिक्षेत्र अधिकारी डीपी सोनवानी ने बताया,
“हमने दो बार समतलीकरण कार्य को रुकवाया है। संबंधित पक्ष को वैध दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा गया है। जब तक वैध दस्तावेज नहीं मिलते, कार्य पर रोक लगाई जाएगी।”
जमीन पर किसका अधिकार?
यह विवाद इसलिए पेचीदा है क्योंकि जिस भूमि पर समतलीकरण हो रहा है, वहां वन विभाग ने सागौन का प्लांटेशन किया था। सवाल उठता है कि यदि यह जमीन राजस्व विभाग की है, तो वन विभाग ने यहां प्लांटेशन क्यों और कैसे किया?
प्रशासन के सामने चुनौतियां
इस मामले में दोनों विभागों की अलग-अलग दलीलों ने स्थानीय शासन को असमंजस में डाल दिया है। जब तक यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि जमीन का स्वामित्व किसके पास है, तब तक कार्य रोकने या जारी रखने का सवाल बना रहेगा।
क्या होगा आगे?
यह मामला स्थानीय जनता में भी चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रशासन के लिए यह एक चुनौती है कि वह विवादित भूमि की स्थिति स्पष्ट करे और दोनों विभागों के बीच समन्वय स्थापित करे। अब देखना है कि क्या जिम्मेदार अधिकारी समय रहते उचित निर्णय ले पाते हैं, या यह मामला और उलझता जाएगा।
नजरें अब प्रशासन के निर्णय पर टिकी हैं।