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सरकारी विज्ञापन वितरण में बड़ी असमानता , छोटे डिजिटल मीडिया को नज़रअंदाज़ करने की साजिश?

छत्तीसगढ़/ सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मिली जानकारी से चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। सरकारी विज्ञापन नीति में पारदर्शिता की बात करने वाली सरकार कुछ चुनिंदा बड़े डिजिटल मीडिया संस्थानों को करोड़ों रुपये का लाभ पहुंचा रही है, जबकि छोटे और क्षेत्रीय डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म को मामूली रकम में सिमटने पर मजबूर कर दिया जाता है।

आरटीआई से प्राप्त हस्तलिखित नोट के अनुसार, एक ही समूह के दो डिजिटल मीडिया संस्थानों को छह माह के लिए प्रस्तावित विज्ञापन योजना में ₹75,000 प्रतिदिन की दर से कुल ₹5.40 करोड़ रुपये देने की बात कही गई है। इसका मतलब है कि केवल एक माह में प्रत्येक संस्थान को ₹45 लाख रुपये मिल रहे हैं, और यह राशि टैक्स के अतिरिक्त है।

छोटे मीडिया संस्थानों के लिए अलग नियम?…
छत्तीसगढ़ में छोटे डिजिटल मीडिया संस्थानों की स्थिति देखें तो यह असमानता साफ दिखती है। डिजिटल मीडिया में सरकारी विज्ञापन की पहुंच सीमित संख्या में प्रभावशाली और बड़े संस्थानों तक ही सिमटकर रह गई है। RTI से मिले तथ्यों से स्पष्ट है कि जितनी राशि एक बड़े संस्थान को महज एक माह में दी जा रही है, उतनी रकम कई छोटे संस्थानों को पूरे सालभर में भी नहीं मिलती।

क्या है विज्ञापन नीति का आधार?…
सरकार की DAVP (Directorate of Advertising and Visual Publicity) दरें सबके लिए समान होनी चाहिए, लेकिन प्रस्तावित पत्र अवलोकन करने पर व्यावहारिक रूप से यह नीति कुछ संस्थानों को फायदा पहुंचाने का जरिया बनती दिख रही है। इस असमानता को समझने के लिए छोटे डिजिटल मीडिया संस्थानों द्वारा किए गए आवेदनों और स्वीकृत राशि की तुलना करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि बड़े संस्थानों को भारी-भरकम रकम दी जा रही है, जबकि छोटे मीडिया संस्थान सरकारी विज्ञापनों के लिए महीनों चक्कर काटते रहते हैं।

बड़ा सवाल:
क्या यह नीति पारदर्शी है? , क्या विज्ञापन आवंटन में निष्पक्षता है? , छोटे डिजिटल मीडिया संस्थानों को सरकार समान अवसर क्यों नहीं देती? , क्या बड़े संस्थानों को फायदा पहुंचाने के पीछे कोई राजनीतिक या व्यावसायिक दबाव है?

यदि सरकार डिजिटल मीडिया को समान अवसर देने का दावा करती है, तो उसे यह स्पष्ट करना होगा कि विज्ञापन नीति का निर्धारण किन मानकों पर किया जा रहा है। यह सवाल केवल छत्तीसगढ़ के नहीं, बल्कि पूरे देश के डिजिटल मीडिया संस्थानों से जुड़े हुए हैं। सरकारी विज्ञापन वितरण की इस असमानता को लेकर पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग अब तेज होनी चाहिए।

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